सुमी,
जानती हो, समन्दर की बेताब लहरों को तो एक बार रोका जा सकता है। तूफानो को कैद किया जा सकता है। बेलगाम हवाओं को तो बांधा जा सकता है। मगर, दिल के आवारा अरमानों को नही रोका जा सकता है। अगर एक बार ये अरमानों के फलक मे कुलांचे भरने लगते हैं तो फिर ये रुकते ही नही न जाने कहां - कहां उडने लगते हैं।
अपने वीराने को छोड के या फिर अपने कफ़स को तोड के कल्पनाओं के पंख फडफडाते हुये चल देते हैं, अपने आशिक से मिलने और पलक झपकते ही अपनी मुहब्बत के साथ होते हैं, किसी बाग मे, किसी नदी के किनारे, किसी पर्वत पे या फिर अपनी मनचाही जगह पे जहां कोई नही होता सिवाय उसके और उसकी मुहब्ब्त के। वहां सिर्फ होता है खाब देखने वाला और उसकी मुहब्बत। और तब इस ख्वाबों खयालों की दुनिया मे वह अपने सारे अरमा पूरे करता रहता है, खुश होता रहता है। यह अलग बात कि ऑख खुलते ही वह फिर हकीकत की कठोर और तन्हा जमी पे फिर से खुद को रोता बिलखता पाता है।
मगर ये ख्वाब ही तो हैं जो इन्सान को अपनी मुहब्बत से जोडे रखते हैं। वस्ल की उम्मीद बने रहते हैं। सच, खाब ही तो हैं जो मुहब्बत को इतना हंसी और जवां बनाये रखते हैं ये खाब ही तो हैं जो अपनो से बिछड के उससे मिलन की झूठी ही सही मगर एक शुकूं तो देते है, और सुमी, एक बात जान लो खाब सिर्फ मुहब्बत मे नही देखे जाते हैं बहुत से मामले मे देखे जाते हैं यहां तब कि तुम ये जो सारा पसारा आलम देखती हो न, चाहे वो चॉद सितारे हो आसमॉ हो जमी हो या कि इन्सान हो सब कुछ उस रब ने तब ही बनाया होगा जब उसने ये सब बनाने का खाब देखा होगा। और फिर उसे तालीम किया होगा। वर्ना न ये चॉद होता न सितारे होते न तुम होती न मै होता और न ही ये दुनिया होती।
इसी तरह कोई मुसव्विर पहले कोई खाब देखता है तब जाके कोई तसवीर नुमाया होती है। कोई शाहजहां खाब देखता है और अपनी मुहब्ब्त के लिये ताजमहल तामीर कराता है। कोई गालिब कोई मीर खाब देखता है, तब जाके ग़जल का दीवान तैयार होता है।
ख्वाब फ़कत ख्वाब नही होते हैं, ये खाब मुहब्बत से लबरेज दिलों के लिये खाद पानी होते हैं जो आशिकों को उनकी मुहब्बत से बिछड के भी जोडे रखती है। हिज्र मे जीने का सबब बनती है।
लिहाजा मेरी जानू तुम ख्वाब को फक्त ख्वाब मत समझना। खाब हकीकत की पहली पायदान होते हैं। और ये भी जान लो जिस दिन इन्सान खाब देखना बंद कर देगा समझ लेना उस दिन ये दुनिया खतम हो जायेगी। मर जायेगी।
और ............. यही खाब ही तो हैं जो मुझे भी जिदा रखे है युगों युगों से एक जमाने से इस तनहा वीराने मे। जहां मै हर रोज ख्वाब देखता हूं तुमसे मिलने के तुमसे बतियाने के तुम्हारे साथ दिनो रात बिताने के। सच सुमी ये खाब न होते तो मै इन पत्थरों के बीच रह रहा के खुद भी पत्थर हो गया होता और एक दिन रेत सा बिखर गया होता।
मगर ये खाब ही हैं जो मुझे जिंदा रखेंगे तब तक जब तक कि तुम मेरी और मै तुम्हारा नही हो जाता। तुम्हारा नही हो जाता।
मुकेश इलाहाबादी ...................
जानती हो, समन्दर की बेताब लहरों को तो एक बार रोका जा सकता है। तूफानो को कैद किया जा सकता है। बेलगाम हवाओं को तो बांधा जा सकता है। मगर, दिल के आवारा अरमानों को नही रोका जा सकता है। अगर एक बार ये अरमानों के फलक मे कुलांचे भरने लगते हैं तो फिर ये रुकते ही नही न जाने कहां - कहां उडने लगते हैं।
अपने वीराने को छोड के या फिर अपने कफ़स को तोड के कल्पनाओं के पंख फडफडाते हुये चल देते हैं, अपने आशिक से मिलने और पलक झपकते ही अपनी मुहब्बत के साथ होते हैं, किसी बाग मे, किसी नदी के किनारे, किसी पर्वत पे या फिर अपनी मनचाही जगह पे जहां कोई नही होता सिवाय उसके और उसकी मुहब्ब्त के। वहां सिर्फ होता है खाब देखने वाला और उसकी मुहब्बत। और तब इस ख्वाबों खयालों की दुनिया मे वह अपने सारे अरमा पूरे करता रहता है, खुश होता रहता है। यह अलग बात कि ऑख खुलते ही वह फिर हकीकत की कठोर और तन्हा जमी पे फिर से खुद को रोता बिलखता पाता है।
मगर ये ख्वाब ही तो हैं जो इन्सान को अपनी मुहब्बत से जोडे रखते हैं। वस्ल की उम्मीद बने रहते हैं। सच, खाब ही तो हैं जो मुहब्बत को इतना हंसी और जवां बनाये रखते हैं ये खाब ही तो हैं जो अपनो से बिछड के उससे मिलन की झूठी ही सही मगर एक शुकूं तो देते है, और सुमी, एक बात जान लो खाब सिर्फ मुहब्बत मे नही देखे जाते हैं बहुत से मामले मे देखे जाते हैं यहां तब कि तुम ये जो सारा पसारा आलम देखती हो न, चाहे वो चॉद सितारे हो आसमॉ हो जमी हो या कि इन्सान हो सब कुछ उस रब ने तब ही बनाया होगा जब उसने ये सब बनाने का खाब देखा होगा। और फिर उसे तालीम किया होगा। वर्ना न ये चॉद होता न सितारे होते न तुम होती न मै होता और न ही ये दुनिया होती।
इसी तरह कोई मुसव्विर पहले कोई खाब देखता है तब जाके कोई तसवीर नुमाया होती है। कोई शाहजहां खाब देखता है और अपनी मुहब्ब्त के लिये ताजमहल तामीर कराता है। कोई गालिब कोई मीर खाब देखता है, तब जाके ग़जल का दीवान तैयार होता है।
ख्वाब फ़कत ख्वाब नही होते हैं, ये खाब मुहब्बत से लबरेज दिलों के लिये खाद पानी होते हैं जो आशिकों को उनकी मुहब्बत से बिछड के भी जोडे रखती है। हिज्र मे जीने का सबब बनती है।
लिहाजा मेरी जानू तुम ख्वाब को फक्त ख्वाब मत समझना। खाब हकीकत की पहली पायदान होते हैं। और ये भी जान लो जिस दिन इन्सान खाब देखना बंद कर देगा समझ लेना उस दिन ये दुनिया खतम हो जायेगी। मर जायेगी।
और ............. यही खाब ही तो हैं जो मुझे भी जिदा रखे है युगों युगों से एक जमाने से इस तनहा वीराने मे। जहां मै हर रोज ख्वाब देखता हूं तुमसे मिलने के तुमसे बतियाने के तुम्हारे साथ दिनो रात बिताने के। सच सुमी ये खाब न होते तो मै इन पत्थरों के बीच रह रहा के खुद भी पत्थर हो गया होता और एक दिन रेत सा बिखर गया होता।
मगर ये खाब ही हैं जो मुझे जिंदा रखेंगे तब तक जब तक कि तुम मेरी और मै तुम्हारा नही हो जाता। तुम्हारा नही हो जाता।
मुकेश इलाहाबादी ...................
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