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Monday 8 February 2016

प्रेम गली अति सांकरी

सुमी,
 
सुना है, किसी सयाने ने कहा है।  ' प्रेम गली अति सांकरी, जा में दुई न समाय'
जब कभी सोचता हूँ इन पंक्तियों के बारे में तो लगता है, ऐसा कहने वाला, सयाना 
रहा हो या न रहा हो, पर प्रेमी ज़रूर रहा होगा,जिसने प्रेम की पराकष्ठा को जाना होगा
महसूस होगा रोम - रोम से , रग - रेशे से, उसके लिए प्रेम कोई शब्दों का छलावा न
रहा होगा, किसी कविता का या ग़ज़ल का छंद और बंद न रहा होगा, किसी हसीन
शाम की यादें भर न रही होगा -
उसके लिए तो प्रेम अपने और अपने प्रेमी के अस्तित्व का अनुभव भर नहीं पूरी समष्टि
और सृष्टि का अनुभव रहा होगा - प्रेम।
तभी तो उसने
ये बात कही होगी - प्रेम गली अति सांकरी।
हाँ !!  वो बात दीगर उसकी महबूबा कोई
हाड- मॉस की रही हो या फिर ईश्वर रहा हो या की 'सत्य' रहा हो.
पर इतना सच है,
उसने प्रेम की पराकाष्टा को छुआ होगा।
शायद तभी ये कह भी पाया होगा।  
एक बात जान लो सुमी, ये तो सच है 'प्रेम'  कोई राजपथ नहीं है जिसपे शान से चला जा
सके।  प्रेम की गली में तो राजा रानी को भी सट सट के चलना होता है, खाई खंदक से
बच - बच के निकलना होता है , वरना तो , ज़रा सा चूके और गए, तभी तो आज तक जिसने
भी प्रेम किया उसने ही 'प्रेम' को 'गली' कहा या 'डगर' कहा।  राजपथ तो किसी ने नहीं कहा।
और इन सयाने ने तो इस गली को यहाँ तक संकरी कह दिया कि इस गली में तो दो
हो कर जा ही नहीं सकते।  क्यूँ की जब तक दो है तब तक प्रेम का दिखावा हो सकता
है।  नाटक हो सकता है।  पर प्रेम तो कतई नहीं हो सकता।
क्यों कि प्रेम की गली में आते ही 'द्वैत' तो अद्वैत हो जाता है।  'अद्वैत' समझती हो न ?
अद्वैत - का अर्थ होता है।  जो दो न हो। अद्भुत शब्द है जो भारतीय मनीषा ने दुनिया को दिया है।
अद्वैत - जो दो न हो - क्यूँ की एक कहने से लगता है दो होगा कहीं न कहीं।
क्यों कि दो के बिना एक भी नहीं हो सकता।  और जब एक होगा तो दो भी होगा , तीन भी होगा
और अनंत भी हो सकते हैं।  इसी लिए सत्य को , परम सत्य को 'अद्वैत' कहा जाता है।
जो दो न हो।  जो दो जैसा भाषता तो हो।  पर दो न हो। 
तो मेरे देखे प्रेम की गली से गुज़ारना 'अद्वैत' की गली से गुज़ारना है।  जहाँ दो जिस्म हो सकते हैं.
 दो रूह हो सकती है।  दो साँसे आती जाती लग सकती हैं।  पर वे सतह की बातें हैं। 
तल पे एक ही हैं।  सतह पे दो लहरें हो सकती हैं।  पर सागर में दोनों लहरें एक ही हैं।
तभी तो दो प्रेम करने वालों के लिए कहा जाता है।  ये 'दो जिस्म एक जान हैं'
प्रेम की भावदशा में।
एक साँस लेता है तो दुसरे का दिल धड़कता है।
एक का दिल धड़कता है तो दुसरे के जिस्म में हरक़त होती है।
और यही अवस्था जब और और और गहराती जाती है।
तो वह अवस्था 'अद्वैत' की अवस्था होती है। 
उसी अनुभव को कोई सायना ' अनलहक' कहता है।  कोई 'अहम ब्रम्हास्मि' कहता है।
पर ये सभी हैं उसी 'प्रेम' के परम अनुभव। अद्वैत के अनुभव।
एक बात और जान लो।  प्रेम की अवस्था में -
न 'मै' रहता है
न 'तुम' रहता है
न 'हम ' रहता है
वहां तो सिर्फ और सिर्फ वही रहता है - ब्रम्हा - परम सत्य - जो सिर्फ और सिर्फ ' प्रेम' है।  जहाँ
दो नहीं है - सब कुछ एक है एक है एक है।
आओ हम भी प्रेम में उतरें और उस परम सत्य को अनुभव करें। 
जहाँ पे -- सीता और राम   -----     सीताराम हो जाता है
जहाँ पे --- राधा और कृष्ण  ----     राधेकृष्ण हो जाता है
जहां पे 'अद्वैत' घट जाता है। 

जहाँ  पे 'जिस्म नहीं,  रूह ही नहीं।  सिर्फ और सिर्फ ' प्रेम' रहता है।
बिशुद्ध 'प्रेम'
बस इनता ही।

मुकेश इलाहाबादी --------------------------





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