Pages

Monday 28 March 2016

आवाहन



अदि पुरुष  ने
आवाहन किया
आत्मा को

आत्मा आ कर लिपट गयी
उसके इर्द गिर्द

फिर उसने
आवाहन किया
पृथ्वी को
वह उसके इर्द गिर्द लिपट कर
रचने लगी शरीर

फिर आदि पुरुष के
आवाहन पे
आकाश फ़ैल गया
शरीर के रग - रेशे में
अवकाश बन के


और फिर
उसने आवाहन किया
जल का
जल भी रुधिर बन के रग रेशों में
और आँखों में अश्रु बन कर
समाहित हो गया

वायु भी आवाहन करने पे
बसी स्वांस बन के

फिर आवाहन किया अग्नि का
जो बनी जिजीविषा जीने की

बस इन्ही पंच भूतों की तरह
और मैं जीता रहा इन पंच भूतों के साथ
अपने अहंकार में
अपनी अपूर्णता में
और अब ..

आज मैं तुम्हारा आवाहन करता हूँ

पूरे प्रण प्राण से
आ बस्ने के लिए
मेरे पूरे के पूरे अस्तित्व में

शिव पार्वती सा
राधा कृष्ण सा
इदं और अहम सा

मुकेश इलाहाबादी ----------

No comments:

Post a Comment