इक लम्बा अरसा गुज़र जाने के बाद भी
तेरा चेहरा तेरी बातें नहीं भूला आज भी
आंसूं से तरबतर है जिस्म यहाँ तक कि
बरसात से नम है वज़ूद की बुनियाद भी
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
तेरा चेहरा तेरी बातें नहीं भूला आज भी
आंसूं से तरबतर है जिस्म यहाँ तक कि
बरसात से नम है वज़ूद की बुनियाद भी
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
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