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Tuesday 31 May 2016

मैं बन जाना चाहता हूँ सब कुछ

मैं
बन जाना
चाहता हूँ
एक खूब
खूब बड़ा सा
आसमान
सच्ची - मुच्ची का
जिसमे तुम उड़ो
अपने पंख पसार के
ऊपर और खूब ऊपर
जितनी ऊपर तुम जा सको
और मैं तुम्हे देखूं
उड़ता हुआ
चुप चाप
और निस्पन्द

यहाँ तक कि
कई बार मैंने
चाहा बन जाऊँ बादल
और तुम बन जाओ धरती
फिर मैं बरसूँ
झम -झमा झम
और बरस कर
हो जाऊं खाली
और,,
खो जाऊं
आसमान में
फिर - फिर से भर लाने को
प्रेम रस तुम पर
बरसाने को

या फिर
मैं बन जाऊं एक मुंडेर
जिसपे तुम चहको
बुलबुल सा
या फिर मैं बन जाऊँ
इक बड़ा सा पेड़
जिसकी डाली पे
तुम बनाओ अपना घोसला
बया सा

सच मैं बन जाना चाहता हूँ
सब कुछ
बहुत कुछ
और कुछ भी
तुम्हारे लिए
सिर्फ तुम्हारे लिए


मुकेश इलाहाबादी --------

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