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Thursday 14 July 2016

रातो दिन का हिसाब मांगेगी

रातो  दिन  का हिसाब मांगेगी
ज़िंदगी कुछ तो जवाब मांगेगी

परदेसी पिया !किसी दिन गोरी
सूने सावन का हिसाब मांगेगी

अगर  आब न  हो मयस्सर, तो
देखना यही प्यास शराब मांगेगी

चेहरों पे यूँ ही पड़ते रहे तेज़ाब
यही ख़ूबसूरती हिज़ाब मांगेगी

रात और अँधेरा ही काफी नहीं,,
सोने के लिए नींद ख्वाब मांगेगी

मुकेश इलाहाबादी -----------------

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