सुना है,
दुनिया गोल है
पर् ,
शायद ,
इतनी भी गोल नही
कि,
चल - चल कर
हम फिर, वहीं मिल् जाते
जहां से बिछड़े थे
क्यूँ , सुमी,
सही कह रहा हूँ न ??
मुकेश इलाहाबादी -----
दुनिया गोल है
पर् ,
शायद ,
इतनी भी गोल नही
कि,
चल - चल कर
हम फिर, वहीं मिल् जाते
जहां से बिछड़े थे
क्यूँ , सुमी,
सही कह रहा हूँ न ??
मुकेश इलाहाबादी -----
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