Pages

Wednesday 31 August 2016

ज़िन्दगी हमे आजमाने लगी

ज़िन्दगी हमे आजमाने लगी
कश्ती हमारी डगमगाने लगी
देख तेरे खिले महुए सी हंसी
हसरते फिर मुस्कुराने लगी
मुद्दतों से  वीरान  था आँगन
तुम  क्यूँ पायल बजाने लगी
पुरानी  हवेली  टूटी  मुंडेर पेएए
फिर बुलबुल चहचहाने लगी
बेवजह  आग  लगा दी तुमने
गीली  थी लकड़ी धुआने लगी
मुकेश इलाहाबादी ............

No comments:

Post a Comment