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Monday 15 August 2016

ज़मी ने चॉद से इठलाते हुये कहा

सुमी जानती हो ?
एक दिन,
ज़मी ने चॉद से इठलाते हुये कहा, ‘चॉद ! एक तो तुम महीने मे सिर्फ एक दिन पूरा का पूरा खिलते हो। बाकी दिन खिलते ही हो तो कभी आधा तो कभी अधूरा खिलते हो, और फिर तुम फ़लक मे इतनी दूर हो कि तुम्हे इतनी दूर से देखने से जी नहीं भरता। मै चाहती हूं, तुम मेरे बहुत बहुत नजदीक रहो। ताकि मै तुमसे बतिया सकूं तुम्हारे संग हंस सकूं खिलखिला सकूं।’
यह सुन चॉद हंसा, मुस्कुराया, बोला ‘ठीक है मेरी प्यारी ज़मी, ऐसा करो तुम अपनी आखें खोलो।
ज़मी किसी चंचल किशोरी सा अपनी बडी बडी नीर भरी ठहरे पानी की झील सी गहरी पलकें खोल दी। और ,,,,,,,,, चॉद उस ठहरी हुयी झील में उतर गया।
ज़्ामी बहुत खुश हुयी।
चॉद भी जमी की आगोंश मे आ के खुश था।
दोनो अठखेलियॉ करने लगे, देर तक मुहब्बत करते रहे।
और सुबह जैसे ही आफताब के आने का वक्त हुआ।
चंचल चॉद झील से बाहर निकल फिर से आसमान में रोज सा टंग गया।
फिर से रात होने के इंतजार में । धरती ने भी उसे फिस संाझ आने का वायदा लिया।

और,, सुमी तब से ही शायर और प्रेमी अपनी मासूका की ऑखों की तुलना झील से करने लगे।
खैर ,,,
मै तुम्हारा चॉद हूं या नही ये तो मुझे नही पता पर तुम मेरी ज़मी जरुर हो । जिसे मै यादों के फ़लक से रोज रोज रोज निहारता हूं।
और निहारता रहूंगा न जाने कितने दिनो तक शायद युगों युगों तक तुम्हारी झील सी ऑखों मे उतरने के लिये।
मुकेश इलाहाबादी..............

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