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Wednesday 31 August 2016

कुँआ

बूँद बूँद पानी को
तरसते
हैंड पम्प को देखकर
हम लौट जाते हैं
खाली बाल्टी लिये
अपने सूखे होठों को
अपनी ही जीभ से तर करते हुए
इस उम्मीद से
किए शायद
अगली बार आने पर
यह सूखा हैंड पम्प
ठन्डे पानी की फुहार
बहा रहा होगा
पर ए
हम कभी नहीं झांकते
गाँव के उस कुंए मे
जिसे वर्षों पहले ढक दिया गया है
कि फिर से कोई हादसा न हो
उस हादसे के बाद
जबए
इसी कुँए मे गांव की
रधिया मर गयी थी
अपने होने वाले बच्चे के साथ
लोक लाज के डर से
सुना हैए इस हादसे के पहले भी
किसी को मार के इस सूनसान कुंए मे
फेंक दिया गया था
बहरहाल ए यह वही कुँआ है
जिसने सदियों सदियों
बुझाई है प्यास पूरे गाँव की
हमारे बाप दादाओं की
और उनके भी बाप दादाओं की भी
न जाने कितने पुरखों की
आज वही अभिशप्त कुँआ
लोहे की जाली से
ढँक दिया गया है
जो की अब महज़ निशानी
बन के रह गया है गाँव की
कभी यही कुंआ
गाँव का कम्युनिटी सेंटर
हुआ करता था
जिसकी जगत पे
गाँव भर कि औरतें और बहुएं
आती थी भर. भर घड़े मे
पानी के साथ साथ गाँव भर की
ख़बरों से खुद को भर ले जाती थीं
उनकी तमाम हंसी ठिठोली भी तो
यही हुआ करती थी
इसी कुँएं की जगत पे ही तो
वो कुछ देर
खुला आकाशए ठंडी हवा और ठंड़ा पानी
पा पाती थीं
इसी कुंए की जगत पर
गर्मी की दोपहर में
गाँव के किशोर और किशोर हो चुके युवक
बैठतेए बतियाते एखिलखिलाते
और चिलचिलाती धूप मे
थका मुसाफिर भी तो
इसी कुंए पे आकर
हाथ पैर धोकर
इसके पानी से
सत्तू सान के खा करए तृप्त होता
यही वह कुआं था
जो गांव को
एक सूत्र मे पिरोये रखता था
क्योंकिए यही गाँव का एकमात्र
कुँआ था
अबए हैंड पम्प आ जाने से
हर आदमी अपना अपना
कुॅंआ अपने आँगन मे रखता है
खैरए
अगर एक बार फिर
हम
इस कुँए मे झाँकें
गहराई मे उतर कर
वक़्त के कूड़े से अटे .पटे
कुंए को साफ़ करें तो
शायदए एक बार फ़िर
हरहरा कर हमे दे जाए
ठंडा और शीतल पानी
पूरे गाँव को
सदियों सदियों तक के लिये
और हमेंए फिलहाल की तरह
अपने सूखे होठों को
अपनी ही जीभ से न तर करना पड़े

मुकेश इलाहाबादी ....................

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