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Wednesday 23 November 2016

परिंदो का भी ठिकाना है

परिंदो का भी ठिकाना  है
बूढा बरगद आशियाना है

मुसाफिर मैं उम्र भर का
फ़क़त चलते ही जाना है

तेरी  खामोश  निगाहों से,
किया वादा भी निभाना है

तुमको  मुहब्बत ही न  थी
रुसवाई फ़क़त बहाना था

इक दिन तुम भी मानोगे
मुकेश अजब दीवाना था

मुकेश इलाहाबादी ----------

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