Pages

Friday 24 March 2017

यादें , किसी पंछी सा

यादें ,
किसी पंछी सा
अनंत आकाश में
उड़ती हैं,
दूर तलक
नज़रों से ओझल हो जाने की
हद तक, फिर सांझ
थक कर लौट आती हैं अपने ठिये पे
और चहचहाती हैं देर तक

मुकेश इलाहाबादी ---------

No comments:

Post a Comment