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Wednesday 24 May 2017

आकाश एक शहर है

आकाश  
एक शहर है

इस बड़े खूब बड़े से शहर में
इक धरती है
इक  सूरज है

सूरज धरती  को देख
मुस्कुराता है
ब्रम्हांड में अहर्निश चक्कर लगता है
धरती सूरज के लिए नाचती है
अपनी धुरी पे
धानी चुनरी ओढ़े
सूरज के आकर्षण में बिंधी - बिंधी

इक चाँद भी है - धरती की मुहब्बत में गाफिल
जो हर रात नई - नई कलाओं से
लुभाना चाहता है धरती को

कुछ तारे  भी हैं -
जो चुप चाप देखते हैं
इश्क़ बाजी
चाँद की, सूरज की

इन सब के अलावा
इक सितारा भी है
उत्तर में
जिसे ध्रुव तारा कहते हैं

ये ध्रुव तारा भी
फिरफ्तार है - पृथ्वी की मुहब्बत में
अटल - निश्चल
ये तारा - ध्रुव तारा
चुप रहता है
कुछ नहीं कहता है
सिर्फ इक कोने से धरती को देखता है
शाम से सुबह तक
और फिर डूब जाता है आकश के न जाने
किस अँधेरे में
शाम को फिर से उगने और अपनी
प्यारी धरती को देखने के लिए

सुमी,
इन सब में
तुम धरती और
मुझे ध्रुव तारा जानो

सूरज और चाँद में बारे में मुझसे  मत पूछो

मुकेश इलाहाबादी ----------------------------

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