बंद ,
आँखों से भी पहचान लूँगा
तुम्हे, तुम्हारी पदचाप से
हज़ार खुशबुओं में भी
जान लूँगा
तुम्हे, तुम्हारे बदन की खुशबू से
कि, तुम मुझमे समाहित हो
पंच महाभूतों
और , मन बुद्धि चित्त के साथ
हमेशा - हमेशा के लिए
ओ ! मेरी प्रिये
मेरी आत्म खंड
ओ ! मेरी सोल मेट
मुकेश इलाहाबादी -------
आँखों से भी पहचान लूँगा
तुम्हे, तुम्हारी पदचाप से
हज़ार खुशबुओं में भी
जान लूँगा
तुम्हे, तुम्हारे बदन की खुशबू से
कि, तुम मुझमे समाहित हो
पंच महाभूतों
और , मन बुद्धि चित्त के साथ
हमेशा - हमेशा के लिए
ओ ! मेरी प्रिये
मेरी आत्म खंड
ओ ! मेरी सोल मेट
मुकेश इलाहाबादी -------
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