Pages

Friday 26 May 2017

इतिहासवेत्ता खोज लाये

इतिहासवेत्ता
खोज लाये
किताबों और
धरती को खोद के
हड़प्पा और मोहन जोदड़ो की सभ्यता 
खोज लाये
सभय्ता के इन खंडहरों में
भग्न इमारतें
टूटी हुई सड़के
बुझे हुए चूल्हे
सूखे हुए पोखर
टूटी हुई छतों के मुंडेर
काश ! इतिहास वेत्ता
इन भग्नावशेषों में खोज पाते
मानव गंध
शाश्वत प्रेम
तो ज़रूर वहां मिलता वो पोखर
जंहा तुम मुझसे मिलने आती थी
गागर भरने के बहाने
वो वट वृक्ष और अमराई भी मिल जाती
जिसके तले मैंने लिया था
तुम्हारा पहला चुम्बन
वो खेत जहाँ से साँझ लौटता
कंधे पे धरे धरे हल - मगन
और मिलती तुम
अपनी डेहरी पे करते हुए मेरा इंतज़ार
काश इतिहास वेत्ता खोज पाते ये सब भी
तो मुझे न दिलाना पड़ता याद, तुम्हे
कि मेरा तुमसे प्रेम आज या कल का नहीं
सदियों सदियों पुराना है
इतना पुराना जितना
मोहन जोदड़ो की सभ्यता
या की उससे भी पहले,
यानी कि वैदिक काल,
या की जब से मानव ने पृथ्वी पे कदम रखे हैं
ओ ! मेरी ईव
ओ ! मेरी शतरूपा
ओ ! मेरी सुमी - सुन रही हो न ??
तुम्हरा मनु
तुम्हरा ऐडम
मुकेश इलाहाबादी -------------------

No comments:

Post a Comment