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Tuesday 18 July 2017

उन्मुक्त हंसी

तुम्हारी
उन्मुक्त हंसी
भर देती है
उजास से
मेरे अंतरतम को
और मै डूबने से बच जाता हूँ
उदासी के गहन गह्वर में

मुकेश इलाहाबादी ---------

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