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Wednesday 5 July 2017

एक छत - एक बॉलकनी -एक दृश्य

एक छत - एक बॉलकनी -एक दृश्य
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पहले,
उसने छत पे बंधी अलगनी पे 
बाल्टी में रखे धुले कपड़ों को
फैलाया सूखने के लिए
फिर,
शैम्पू की भीनी - भीनी खुशबू से तर
अपने धुले गीले बालों में बंधे तौलियो को
अदा से खोल के बालों को झटका और
फिर उसी तौलिये से झटक- झटक के बालों से
तमाम मोतियों को छत पे बिखर जाने दिया
अब
वह जा चुकी है
सामने की खिड़की पे
एक उचटती सी अजनबी नज़र डालते हुए
उसका - गुलाबी, रोंये दार, हल्का भीगा
बालों की खुशबू से तर तौलिया
अलगनी में शान से टंगा
मुँह चिढ़ाने लगा खिड़की को
खिड़की के भीतर से दो हाथ
खिड़की को बंद कर के
सिगरेट केश की ओर बढ़ गए
मुकेश इलाहाबादी -------------

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