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Saturday 22 July 2017

तुम इतना भी सज संवर के न आया करो

तुम इतना भी सज संवर के न आया करो
हद से ज़्यादा नाज़ो नखरे न दिखाया करो

पानी पे लिखो रेत पे लिखो दिल पे लिखो
इश्क़ लिख कर फिर फिर मिटाया न करो

तुम अपने सारे रंजो ग़म मुझको सुना देना
अपना सुख दुःख किसी को सुनाया न करो

इक बार कह दिया तो कह दिया 'तू मेरी है'
बार बार मुझसे यही बात कहलाया न करो

पुराना रिन्द हूँ मैखाना का मैखाना पी जाऊँ
अपनी आँखों से इस क़दर पिलाया न कर

दिल हमारा कच्ची ज़मीन का है जानेमन
सावन भादों सा मुहब्बत बरसाया का करो

मुकेश इलाहाबादी --------------------------- 

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