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Sunday 23 July 2017

सुबह की धूप

जैसे
सुबह की धूप
उतरती है, छूती है धरती को  
धरती खिल जाती है
मुस्कुराने लगती है
बस,
ऐसे ही मै आऊँगा तुम्हे छू कर लौट जाउँग
शांझ,
फिर तुम मुस्कुराती रहना रात भर
सुबह के इंतज़ार में

मुकेश इलाहाबादी --------------

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