कुछ
चुप्पियाँ
कुछ सिसकियाँ
कुछ चीखें
कुछ आहटें
जिन्हे हमारे बहरे कान नहीं सुनते
या फिर हलके से कुछ सुनाई भी दिया तो
करवट बदल के सो जाते हैं
अपने लिए एक हसीं सुबह का ख्वाब देखते हुए
मुकेश इलाहाबादी --------
चुप्पियाँ
कुछ सिसकियाँ
कुछ चीखें
कुछ आहटें
जिन्हे हमारे बहरे कान नहीं सुनते
या फिर हलके से कुछ सुनाई भी दिया तो
करवट बदल के सो जाते हैं
अपने लिए एक हसीं सुबह का ख्वाब देखते हुए
मुकेश इलाहाबादी --------
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