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Monday 14 August 2017

जैसे अँधेरे बंद कमरे में

जैसे
अँधेरे बंद कमरे में
किसी झिर्री से आती है
थोड़ी सी रोशनी
थोड़ी सी धूप
थोड़ी सी हवा
बस
ऐसे ही तुम आती हो
मुझ तक
यादों की पतली सुनहरी
रोशनी की तरह
और दे जाती हैं
थोड़ी सी धूप
थोड़ी सी हवा
थोड़ी सी ज़िदंगी

कुछ समझी, लाडो  ??
मेरी सुमी,

मुकेश इलाहाबादी ---------

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