तू अपना बना ले या हमको गैर बता दे
तुम्हारा रहूंगा चाहे हंसा दे चाहे रुला दे
न आज है न रहेगा तुमसे, कोई शिकवा
ये जां तेरी है ज़िंदा रख,कि ज़ह्र पीला दे
किताबे ज़ीस्त पे लिख दिया, तेरा नाम
मै तेरी ग़ज़ल मुझे पढ़ या इसे मिटा दे
ये ज़िंदगी की सर्द रात है,यूँ ही न कटेगी
मेरी दास्ताँ सुन, या फिर अपनी सुना दे
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
No comments:
Post a Comment