इस
बरसात में भी भीगा बहुत
तुम बिन
सांझ
मंदिर में घंटियाँ बज रही थी
जैसे तुम हंस रही हो
मुझे कुछ ऐसा लगा
तुम्हारा
कोई मेसैज नहीं आया
दिन बहुत उदास गुज़रा
की पैड से
उंगलिया बहुत देर
तक खेलती रहीं
फिर जाने क्या सोच के कॉल नहीं किया
मैसेज किया
जानता हूँ
तुम मेरे मैसेज का
जवाब तो न दोगी
पर पढ़ोगी ज़रूर
(बिना चेहरे पे कोइ भाव लाये
दिल में खुश होते हुए )
और रख दोगी मोबाइल चुपचाप
खैर ,,,
तुम अपना काम करो
मै तो ऐसी बक बक करता ही रहूंगा
बाय ,,,,,,
मुकेश इलाहाबादी -----------------
Posted by Mukesh Srivast
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