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Wednesday 23 August 2017

तू रात सा लिपट जाती है मै चाँद सा चमकने लगता हूँ

तू रात सा लिपट जाती है मै चाँद सा चमकने लगता हूँ
फिर जाने क्या होता है सुबह सूरज सा दहकने लगता हूँ

मुझे मालूम है मेरी सिफत पत्थर जैसी है, पर जाने क्यूँ
तेरी सोहबत में आते ही रंजनीगंधा सा महकने लगता हूँ

तेरी मुस्कुराहट सुहानी सुबह सी फ़ैल जाती है मुझमे और
अपने उदास घोंसले से उड़ मै परिंदे सा चहकने लगता हूँ

मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------

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