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Wednesday 29 November 2017

याद आये है तेरा फूलों सा महकता

याद आये है तेरा फूलों सा महकना
स्याह  रातों में चाँदनी सा चमकना

हाथ थामे थामे चले जाना दूर तक
तेरा रह-२,भरी गागर सा छलकना

माथे पे बल  खाती वो बाँकी ज़ुल्फ़ें
जिन्हे अदा से संवारना फिर हँसना

कभी खिलखिलाना कभी रूठ जाना
कभी कभी तेरा खुद,मुझसे लिपटना

समंदर किनारे दूर तक दौड़ते जाना
फिर वो तेरा मेरे इंतज़ार में  ठहरना

मुकेश इलाहाबादी ---------------

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