इल्म की दुनिया में फूल सा खिलूँगा मै
खुशबू हूँ ,ज़माने से कब तक छुपूँगा मै
मिला के हाँथ छुपा के खंज़र मिलूंगा मै
तुम्हारे ही अंदाज़ में तुझसे मिलूंगा मै
चराग़ नहीं हूँ, बुझ जाऊँ हवा के झोंके से
अलाव हूँ मै , बुझते - बुझते ही बुझूंगा मै
अभी रात है , उफ़ुक़ पे जाके डूबा हुआ हूँ
शुबो होते ही आफताफ सा फिर उगूंगा मै
ईश्क़ से ज़्यादा ज़रूरी कई काम हैं मुकेश
ज़िंदगी ने मौका दिया तो फिर मिलूंगा मै
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
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