शायद उम्र का पहिया उल्टा चल रहा है
रोज़ ब रोज़ तेरे चेहरे का नूर बढ़ रहा है
है शायद आफताब भी तेरी मुहब्बत में
तभी तो उसका तन - बदन जल रहा है
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
रोज़ ब रोज़ तेरे चेहरे का नूर बढ़ रहा है
है शायद आफताब भी तेरी मुहब्बत में
तभी तो उसका तन - बदन जल रहा है
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
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