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Tuesday 13 February 2018

चक्रवात

जब भी चित्त शांत होता हुआ महसूस होता है 
चलने लगते हैं तुम्हारी यादों के अंधड़ 
पहले धीरे -धीरे फिर तेज़ और तेज़ और तेज़ 
इतनी तेज़ की अंधड़ अपनी जगह पे घूमने लगता है 
गोल - गोल और गोल 
जो अपनी जगह पे एक छोटे और छोटे और छोटे 
वृत्त में लीन होने लगता है 
तुम्हारी हंसी 
तुम्हारी मुस्कान 
तुम्हारी साथ बिताये सारे पल 
यंहा तक कि मै भी उस चक्रवात में 
डूबने लगता हूँ पूरा का पूरा 
रह जाता है 
सिर्फ और सिर्फ 
एक वृत्त 
शून्य में डूबता हुआ 
जिसमे सिर्फ 'तुम' हो 
और कुछ भी नहीं 
कुछ भी नहीं 
कुछ भी... 

मुकेश इलाहाबादी ---

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