यादों
के मांझे से बाँध
तुम्हारे नाम की पतंग
तान देता हूँ
और फिर पतंग को
उम्मीदों के फ़लक़ पे उड़ते हुए
देख कर खुश हो लेता हूँ
रोज़ दर रोज़
मुकेश इलाहाबादी ------------
के मांझे से बाँध
तुम्हारे नाम की पतंग
तान देता हूँ
और फिर पतंग को
उम्मीदों के फ़लक़ पे उड़ते हुए
देख कर खुश हो लेता हूँ
रोज़ दर रोज़
मुकेश इलाहाबादी ------------
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