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Wednesday 28 March 2018

मेरे हाथों में चाबुक नहीं है

अच्छा है
मेरे हाथों में चाबुक नहीं है
वरना न जाने कितने घोड़े जो
सरपट सरपट दौड़ रहे हैं
मेरी चाबुक से लहू लुहान हो चुके होते
वज़ह उनकी कम रफ़्तार नहीं
वज़ह मेरे हिसाब से न दौड़ने की होती

अच्छा हुआ मेरे हाथों में चाबुक नहीं है
वरना न जाने कितने निर्दोष सिर्फ इस बात पे
चाबुक खा चुके होते कि वे दूसरों के रथ में क्यूँ जुते हैं ?

सिर्फ घोड़े ही क्यूँ अगर मेरे हाथ में भी चाबुक होती तो
गधों को भी मार मार के घोडा बना के अपने हिसाब से हाँकता
और अच्छे से अच्छे घोड़ों को भी चाबुक के दम पे गधा बना चूका होता

और विकास की रफ़्तार में सभी गधे और घोड़े सरपट सरपट दौड़ रहे होते

खैर ! फ़िलहाल मेरे पास सिर्फ शब्दों की चाबुक है
जिससे कभी खुद को तो कभी कागज़ को लहूलुहान कर रहा हूँ

वैसे मैंने सुना है, ईश्वर के पास भी एक चाबुक होती है
जो सब को नहीं दिखती - अदृश्य रहती है
जिसकी मार से कोई बच नहीं सकता
चाहे कितना भी सयाना घोडा या घुड़सवार क्यूँ न हो

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------------




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