कदम -कदम पे खुशबू कदम-क़दम पे रोशनी है
मेरा महबूब एक साथ चाँद और गुले रातरानी है
होगा वो तुम्हारे ज़ालिम या फिर होगा क़ातिल
मेरे लिए तो साँस दर साँस है मेरी ज़िंदगानी है
कब का खो गया होता उदासियों की खलाओं में
हँस रहा हूँ मै महफिलों में ये उसी मेहरबानी है
कुछ लोग कहते हैं वो मोम है कुछ कहे हैं पत्थर
जो छूता हूँ बदन उसका,लगे दरिया की रवानी है
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------
मेरा महबूब एक साथ चाँद और गुले रातरानी है
होगा वो तुम्हारे ज़ालिम या फिर होगा क़ातिल
मेरे लिए तो साँस दर साँस है मेरी ज़िंदगानी है
कब का खो गया होता उदासियों की खलाओं में
हँस रहा हूँ मै महफिलों में ये उसी मेहरबानी है
कुछ लोग कहते हैं वो मोम है कुछ कहे हैं पत्थर
जो छूता हूँ बदन उसका,लगे दरिया की रवानी है
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------
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