रोज़-रोज़ गरल पी रहे हो तुम
मर-मर के क्यूँ जी रहे हो तुम
बहुत कुछ बोलना तो चाहते हैं
फिर होठं क्यूँ सी रहे हो तुम ?
मुकेश इलाहाबादी ------------
मर-मर के क्यूँ जी रहे हो तुम
बहुत कुछ बोलना तो चाहते हैं
फिर होठं क्यूँ सी रहे हो तुम ?
मुकेश इलाहाबादी ------------
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