फूल की तरह कभी खिला ही नही
किसी की साँसों में मै बसा ही नही
भला कोई मेरा कैसे हो गया होता
बज़्म में मै किसी से मिला ही नही
मंज़िल तक भला मै पहुंचता कैसे
घर से मैंने क़दम निकला ही नहीं
पलट के कोई कैसे मुझ तक आता
किसी को दिल से पुकारा ही नही
मेरी बातों का कोई क्या ज़वाब देता
जब मैंने किसी से कुछ पूछा ही नही
मुकेश इलाहाबादी -----------------
किसी की साँसों में मै बसा ही नही
भला कोई मेरा कैसे हो गया होता
बज़्म में मै किसी से मिला ही नही
मंज़िल तक भला मै पहुंचता कैसे
घर से मैंने क़दम निकला ही नहीं
पलट के कोई कैसे मुझ तक आता
किसी को दिल से पुकारा ही नही
मेरी बातों का कोई क्या ज़वाब देता
जब मैंने किसी से कुछ पूछा ही नही
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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