गर रातो दिन न सही दो चार पल तो गुज़ार
बदन से अपने खामोशी का लबादा तो उतार
ईश्क़ में दुश्मनी बहुत देर अच्छी नहीं होती
आ कुछ देर बैठ हँस बोल गुस्सा तो बिसार
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------
बदन से अपने खामोशी का लबादा तो उतार
ईश्क़ में दुश्मनी बहुत देर अच्छी नहीं होती
आ कुछ देर बैठ हँस बोल गुस्सा तो बिसार
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------
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