अब
मै देखूँगा
तुम्हारे बिन
इठलाते हुए फागुन को
भीगते हुए सावन को
रूठी हुई सर्दियों को
और रोती हुई गर्म रातों को
अब मै देखूँगा तुम्हारे बिन
खुद को रोते हुए
और बहुत कुछ
और भी बहुत कुछ
मै देखूँगा
तुम्हारे बिन
इठलाते हुए फागुन को
भीगते हुए सावन को
रूठी हुई सर्दियों को
और रोती हुई गर्म रातों को
अब मै देखूँगा तुम्हारे बिन
खुद को रोते हुए
और बहुत कुछ
और भी बहुत कुछ
मुकेश इलाहाबादी,,,,,
No comments:
Post a Comment