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Monday 12 August 2019

हम संवेदनशील लोगों के पास

अफ़सोस
और संवेदना व्यक्त करने
के सिवाय कुछ नहीं है
हम संवेदनशील लोगों  के पास

हम कभी बकरीद और शादी ब्याह जैसे उत्सवों पे
होने वाले बेजुबान जानवरों को काटे जाने पे अफ़सोस करते हैं

तो कभी किसी मासूम बच्ची , महिला या लड़की के साथ
हुए बलात्कार के लिए अफ़सोस करते हैं
मोमबत्ती जला कर मात्र संवेदना प्रकट करते हैं

कभी  किसी भाई के द्वारा ज़ायज़ाद  के लिए अपने ही भाई को
मार दिए जाने पे करते हैं अफसोस
तो कभी आतंकवादियों द्वारा मार दिए गए लोगों के लिए अफ़्सोस
और संवेदनाएं व्यक्त करते हैं

काश ! हम भी औरों की तरह असंवेदनशील होते
बेज़ुबान जानवरों को मार के अपनी ज़ुबान का स्वाद बढाते
अपने ही भाई बहनो को मार के अपना स्वार्थ साधते
और खुश  हो के अटटहास लगते लगाते
हमें अपने कुकृत्यों पे कोई अफ़सोस न होता

और अगर किसी दिन किसी दिन
किसी अपने द्वारा मार भी दिए जाएंगे तो
भी कोई अफ़सोस न होगा

क्यूंकी -- मुर्दों को कोई अफ़सोस नहीं होता

मुकेश इलाहाबादी ---------------------

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