पत्थर से इबादत कर रहा हूँ
पानी पे इबारत लिख रहा हूँ
जिनके हाथो में खंज़र हैं मै
उन्ही लोगों से मिल रहा हूँ
जानता हूँ आग का दरिया है
फिर भी नंगे पाँव चल रहा हूँ
तेरी यादें मेरे लिए मरहम हैं
अपने ज़ख्मो पे मल रहा हूँ
जिनके कान नहीं हैं मुकेश
उनसे शिकायत कर रहा हूँ
मुकेश इलाहाबादी ------------
पानी पे इबारत लिख रहा हूँ
जिनके हाथो में खंज़र हैं मै
उन्ही लोगों से मिल रहा हूँ
जानता हूँ आग का दरिया है
फिर भी नंगे पाँव चल रहा हूँ
तेरी यादें मेरे लिए मरहम हैं
अपने ज़ख्मो पे मल रहा हूँ
जिनके कान नहीं हैं मुकेश
उनसे शिकायत कर रहा हूँ
मुकेश इलाहाबादी ------------
सुन्दर गीतिका।
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