मेरे
आस - पास ये जो "रिक्त स्थान" है
ये रिक्त नहीं
इस रिक्त स्थान में
व्याप्त है
तुम्हारे नाम की वायु
जो महकती हुई
मेरे नथुनो से आ के मुझमे
भरती रहती है "प्राण वायु"
इसी रिक्त स्थान से
आती है तुम्हारी यादों की
सुनहरी किरणे जो
जगमग जगमग करती हैं
मेरे अंदर के अँधेरे को भगा के
इसी
रिक्त स्थान में खिलता है
तुम्हारे ईश्क का गुलाब
जो मुझे मुस्कुराने के लिए काफ़ी है
लिहाज़ा,,,,,,
तुम,
मेरे लिए "रिक्त स्थान" भर नहीं हो
जिसे भर के
"मै" पूर्ण होना चाहूँ
"तुम " मेरे लिए "पूर्ण " ही हो
जिसके बगैर मै
"शून्य " हूँ
मुकेश इलाहाबादी -------------
No comments:
Post a Comment