अपने
गुलाबी
और कभी रंग बिरंगे डैनो से
तैरते और गलफड़ों से
पानी के बुलबुले छोड़ते हुए
मछलियाँ
आराम से तैरती रहती हैं
जल में
बिना ये सोचे वो
समंदर के अथाह जल में
तैर रही है या
उस नदी में जो
हिमालय से लेकर
गंगा सागर तक फ़ैली है
या किसी रेगिस्तान में सूख जाने
वाली बरसाती नदी या नाले में
या कि
छोटी और छोटी होती नदी में
जो छोटी होती है
इतनी छोटी कि
उस नदी के तट
काँच के एक्वैरियम की
दीवारों में सिमट जाती है
हालाकि
मछली ये भी जानती है
कि उसे तो एक न एक दिन
किसी मछुवारे के जाल में फंसना ही है
या किसी मगरमच्छ का
ग्रास बनना ही है
या फिर किसी तूफ़ान में
नदी से छिटक
रेत् में तड़फ - तड़फ
दम तोडना है
मुकेश इलाहाबादी --------------
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (३१-१०-२०२०) को 'शरद पूर्णिमा' (चर्चा अंक- ३८७१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी