फुटकर नोट्स,,,
एक,,,
हर
रोज तुम्हारी
यादों के सिक्के
गिनता हूं
और फिर उन्हें
दिल के उदास गुल्लक मे
रख कर सो जाता हूँ
दो,,
जीवन
के सारे रंग
उड़ चुके हैं
जो बचे हैं वे भी
धूसर हो गए हैं
और ये सब हुआ
तुम्हारे जाने के बाद
तीन,,,
तुम्हारी
चकमक- चकमक
सी आँखे
रौशन रखती थीं
जीवन की स्याह रातें
अब कोई चाँद सितारा या
रोशनी नहीं है मेरे पास
चार,,
जब भी
उदासी के बादल
बरसते हैं
तुम्हारे नाम की
नीली छतरी तान लेता हूँ
पांच ,,,
तुम्हारे नाम की
खूंटी पे
आज भी टंगी हैं
मेरी तमाम
उम्मीदें
मुकेश इलाहाबादी,,,,
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
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