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Saturday 16 January 2021

करता है वो अपनी मन मर्ज़ी का

 करता है वो अपनी मन मर्ज़ी का 

ये दिल सुनता कहाँ है किसी का 


जहाँ दरिया बहा करता था वहाँ 

निशान बता रहे हैं सुखी नदी का 


अपने हौसले व बाजुओं के बाद 

करता हूँ भरोसा सिर्फ खुदी का 


न झील है न दरिया न समन्दर 

क्यां करूँ मै अपनी तिश्नगी का 


न ज़ख्म भरे न ही दवा मिली  

क्या करूँ मै ऐसी ज़िंदगी का 


मुकेश इलाहाबादी -----------

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