Pages

Friday, 19 March 2021

दर्द और यादों के सिक्के उछालता हूँ

 दर्द और यादों के सिक्के उछालता हूँ

और रात तेरे ख्वाबों को खरीदता हूँ
मेरी आँखों मे तुम्हारी नाम की झील है
साँझ होते ही इसमे इकचाँद उतरता है
तुम्हारी आँखो मे बातों मे मीठा नशा है
क्या तुम्हारे वज़ूद से महुआ टपकता है
सिर्फ मुझे और तुझे मालूम तू मेरी नहीं
ज़माना मुझे तेरा तुझे मेरी समझता है
जानता हूँ लौट के नहीं आयेगी फिर भी
ये पागल दिल क्यूँ तेरा इंतजार करता है
सावन की बारिस् मे सब कुछ भीगा भीगा
ऐसे मे यादों का अलाव बहुत सुलगता है
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,,,,,,,,,

No comments:

Post a Comment