एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Tuesday, 21 February 2012
डूबती आख्नों में सवाल ज़िन्दगी का
बैठे थाले की तरंग ------------------------
डूबती आख्नों में सवाल ज़िन्दगी का
मिला नहीं माकूल जवाब ज़िन्दगी का
तमाम हसरतों का होना था यही हश्र
मिलना फिर बिछड़ना अंजाम ज़िन्दगी का
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------
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