बैठे ठाले की तरंग -----------
वफ़ा तुम्हारी फितरत नही
बेवफाई हमारी आदत नही
हर बार तुमने रुसवा किया
फिर भी हमें शिकायत नही
लुट गया अपना सारा जँहा
आदत में मिरे किफायत नही
क़द के मै तुम्हारे बराबर बनूँ
ऐसी तो अपनी लियाकत नही
दिल देके तुमसे कोई उम्मीद रखूँ
मुहब्बत मेरे लिए तिजारत नही
मुकेश इलाहाबादी -----------------
बेवफाई हमारी आदत नही
हर बार तुमने रुसवा किया
फिर भी हमें शिकायत नही
लुट गया अपना सारा जँहा
आदत में मिरे किफायत नही
क़द के मै तुम्हारे बराबर बनूँ
ऐसी तो अपनी लियाकत नही
दिल देके तुमसे कोई उम्मीद रखूँ
मुहब्बत मेरे लिए तिजारत नही
मुकेश इलाहाबादी -----------------
वाह................
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गज़ल....