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Wednesday 25 April 2012

मैने ज़िदगी से कुछ सवाल किये थे

बैठे ठाले की तरंग ----------------------

मैने ज़िदगी से कुछ सवाल किये थे
मुहब्बत के,
वफा के
ज़िंदगी के
लेकिन ....
ये सवाल आज भी अनउत्तरित हैं ....
उसी तरह,
पहले दिन की तरह

ये वो सवाल हैं,
जिनके जवाब हवाओं से पूछा
हवाऐं हंसी, जुल्फों से कुछ पल के लिये उलझी सुलझी
और फिर इठला कर, खलाओं मे न जाने कहां गुम हो गयी

ये वो सवाल हैं,
जिनके जवाब कभी महताब तो कभी आफताब
की रोशनी मे ढूंढता रहा,
लेकिन रोशनी भी कुछ पल के लिये
उसके चेहरे से टकरायी, मुस्कुराई
फिर उफूक के न जाने किस जंगल मे खो गयी

मैने ये सवाल उन लहरों से किया
जो ठांठे मारती थी ख्वाबों के समंदर मे
लेकिन ...
ये लहरें भी खो चुकी हैं,
अपनी अंगड़ाइयों के साथ  उन ऑखों मे
जहां इनका वजूद हरहराता था

इन सवालों के जवाब पूछता रहा,
बहुत अर्से तक अपने आपसे,
अपनी रुह से ....
मग़र वहां भी मिली
तारीक़ियां और वीरानियां जिनके पीछे आज भी
मौजूद हैं वे सवाल  उसी तरह
जिस तरह
पहले दिन थे
उसकी ऑखों मे
मेरी ऑखों मे
मेरे जेहन मे
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------

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