बैठे ठाले की तरंग --------------- कुछ तो हुनर रहा होगा, ज़माना ऐसे कंहा माना होगा रात दिन के सफ़र ने, अंदर तक थका डाला होगा फूल ही फूल बिछाए थे, फिर भी कोई कांटा चुभ गया होगा तुम्हारी बातों में हुलस है, सफ़र में कोइ हंसी साथी मिल गया होगा मुसाफिर देर तक सोया है, कई कई रातों का जागा होगा मुकेश इलाहाबादी ---------------------
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