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Tuesday, 1 May 2012

मुहब्बत का तुम्हारी बस इतना मज़ा है

बैठे ठाले की तरंग -------------------------
मुहब्बत  का  तुम्हारी  बस इतना मज़ा है
इक एहसास गुनगुना गुनगुना सा रहता है
तन्हाईयों  में  भी  दिल  उदास  नहीं  होता
दिल  में हर वक़्त सितार सा बजा रहता है 
दरीचे  हमारे  घर  के  बंद है,सभी फिर भी
जाने क्यूँ खुशबुओं से  घर  महकारहता है
 
मुकेश इलाहाबादी --------------------------

1 comment:

  1. सुंदर...............

    pls remove word verification

    regards.

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