Pages

Friday 15 June 2012

अब कोई पत्ता हरा नहीं होगा


बैठे ठाले की तरंग -------------
अब  कोई  पत्ता  हरा  नहीं  होगा
सूख चुका है पानी इन ज़मीनों का
तीर  तलवार  बेशक  छूट  चुके हैं
तहजीब नहीं बदला इन कबीलों का 
ज़रा  सी  हवा  का  रुख  क्या बदला
नकाब  हट  गया  इन  मह्जीबों का
गर तूफाँ का जोर बढ़ता ही रहा,तो
सोच लो अंजाम क्या होगा सफीनो का
मुकेश इलाहाबादी --------------------

No comments:

Post a Comment