एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Sunday, 15 July 2012
न कोई उत्सव था, न गम की रात
न कोई उत्सव था,
न गम की रात
फिर भी किया रतजगा
सारी रात
खांसता , कराहता, रोता रहा
सारी रात
दूर कोई गाता था
सूर-
या कोई
खुदा का सैदायी
और थी एक रोशनी
धीमी और मद्धिम।
मुकेश इलाहाबादी ----------
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