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Monday, 30 July 2012

सर्द मौसम मे सुलगते से होंठ

बैठे ठाले की तरंग ----------------

सर्द मौसम मे सुलगते से होंठ
हैं दिल में आग लगाते ये होंठ
किस बेख़याली मे काटें हैं ये होंठ
लहू के चंद कतरे बताते हैं ये होंठ

दर्द नाकाबिले बरदास्त होने पर
खुद ब खुद भिंच जाते हैं ये होंठ

बेटे के माथे से लगाते वक़्त
ममता की गंगा बहते हैं ये होंठ

सुर्ख लबों को छूने को बेताब
इज़हारे मुहब्बत को लरजते से होंठ

अब कोई किस्सा कहते नही हैं
हालात ने सिल दिये किस्सेबाजों के होंठ

मुकेश इलाहाबादी -------------

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